8TH SEMESTER ! भाग- 117( Desire of A Kiss-2)
"मैं तुझे हमारी अगली फाइट मे शामिल करूँगा...."
"ये हुई बात,तू ही है मेरा सच्चा मित्र...आइ लव यू "
"आइ लव यू टू...चल एक पप्पी दे "मज़ाक करते हुए मैं सुलभ की तरफ बढ़ा ही था कि एम एस वाले सर की नज़र हम पर पड़ गयी और वो ज़ोर से चीखा"क्या यार,ये तुम लोग क्या कर रहे हो...बेशर्मी की भी हद होती है..."
"कुछ नही सर,वो सुलभ की आँख मे कुछ घुस गया था,बस उसे निकाल रहा था..." बिना देरी किए मैं झटपट बोल उठा...
"मुझे मत सीखा तू...और यदि अगली बार से ऐसी हरकत की तो मार-मार के भरता बना दूँगा...समझा..."
"सब समझ गया सर..."
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"अबे उसने हम दोनो को गे तो नही समझ लिया..."कुछ देर बाद सुलभ ने पुछा...
"यही तो प्यार है पगले और वैसे भी वो हमारा क्या उखाड़ लेगा..."
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उसके बाद जब तक कॉलेज चला अरुण मेरी जान ख़ाता रहा वो मुझसे कई बार पुछ चुका था की मैं उसकी,दिव्या से सेट्टिंग कब करवा रहा हूँ... जवाब मे मैने उसे कुछ देर रुकने के लिए कहा और जब कॉलेज ऑफ हुआ तो बाहर निकलते वक़्त मैने अरुण का मोबाइल माँगा....
"अब क्या करेगा मेरे मोबाइल का..."
"सिदार का नंबर ऑफ आ रहा है ,एक मेसेज कर देता हूँ कि सब कुछ कंट्रोल मे है..."
"तो तेरा मोबाइल कहाँ गया..."
"रिचार्ज नही है अंकिल..."
अरुण से मैने कुछ देर के लिए मोबाइल लिया और फिर उसे वापस कर दिया....जब हम दोनो कॉलेज से हॉस्टल की तरफ आ रहे थे तभी अरुण अचानक अपने मोबाइल को देखते हुए खुशी से रोड पर ही गिर पड़ा.... सच मे गिर पड़ा था रोड पर और साथ मे उसका मोबाइल भी...
"मिर्गी मार गयी क्या बे.. सौरभ, जा इसका मुँह सेप्टिक टैंक मे घुसा के आ "
"अबे अरमान...ये देख..."अरुण ने रोड पर लेटे-लेटे अपना मोबाइल मेरी तरफ बढ़ाया ,मैने उसके हाथ से मोबाइल लिया और मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र डाली....
"आइ लव यू टू......"पढ़ते हुए मैने अरुण को हाथ देकर उठाया...
अब अरुण की चाल ही बदल गयी थी... जहाँ हर दिन कॉलेज के बाद हमारी हालत खराब हो जाती थी,वही आज दिव्या के एक मेसेज ने अरुण के अंदर भरपूर मात्रा मे एनर्जी ला दी थी.. मानो एक परमाणु भट्टी उसके andaर दहक रही हो... वो इस समय उस छोटे बच्चे की तरह खुश हो रहा था,जिसे उसका मन पसंद खिलौना लाकर दे दिया गया हो.... वो बार-बार दिव्या के मेसेज को पढ़ता और बीच-बीच मे मोबाइल की स्क्रीन को चूमने लगता...तो कभी अपने मोबाइल को सीने से लगाकर दिव्या का नाम लेने लगता....पूरे रास्ते भर अरुण ने ऐसी हरकते करके मुझे पकाया और जब हम हॉस्टल के सामने आ गये तो वो रुक गया....
"अब क्या हुआ बे..."
"देखा बे,अपुन की स्मार्टनेस के आगे दिव्या फ्लैट हो गयी... उसने मुझे खुद प्रपोज़ किया...अब मानता है ना कि मैं तुझसे और सौरभ से ज़्यादा हॅंडसम हूँ...bलेकिन मुझे एक बात समझ नही आई कि इसने आइ लव यू टू ,क्यूँ लिखकर भेजा.. टू..?? ये तब तब कहते है,जब सामने वाला बंदा तुम्हे i love you कहे... तब तुम i love you too कहते हो....."
"वो इसलिए मेरे लल्लू दोस्त क्यूंकी तूने उसे आइ लव यू का मेसेज लिख कर भेजा था इसलिए उसने आइ लव यू टू ,लिखकर रिप्लाइ किया "
ये सुनकर अरुण फिर से ज़मीन मे गिरने ही वाला था कि मैने उसे पकड़ लिया,
"मैने कब किया बे उसे मेसेज ..."
"तूने नही,मैने किया था मेसेज ...तेरे मोबाइल से उसके नंबर पर...कुछ याद आया या फ्लॅशबैक मे ले जाउ..."
"साले ,तूने मुझसे कहा था कि तू सिदार को मेसेज करेगा "
"हाँ तो सिदार को भी किया ना मेसेज पर फिर दिमाग़ मे आया की क्यों ना दिव्या को भी कर दू.. तेरे तो बस का नहीं है बोलना... और देख उधर से रिप्लाई भी आ गया अब और क्या चाहिए तुम लोगो को मुझसे... चल बोल पापा "
मैं आज तक यही सोचता था कि मेरी ही थ्योरी हमेशा लड़कियो के मामले मे फेल होती है लेकिन उस दिन मुझे ये भी मालूम चल गया कि अरुण भी उन चन्द ग्रेट लोगो मे शामिल है... जिनपर मेरा Sixth Sense कभी-कभी फेल हो सकता है....मुझे ये उम्मीद थी कि जब अरुण को मेरे द्वारा दिव्या के मोबाइल पर आइ लव यू ,वाले मेसेज का पता होगा तो वो मुझे गले लगाएगा और बोलेगा कि"अरमान कल तेरे कैंटीन का बिल मैं भरुन्गा" या फिर आज रात के दारू का पूरा पैसा वो देगा....लेकिन साला यहाँ तो मेरी सारी सोच का ही क्रियाकर्म हो गया....मैं चुप चाप हॉस्टल के अंदर अपने रूम की तरफ जा रहा था और अरुण मुझे गालियाँ बके जा रहा था... पर क्यों...?? ये तो वही बात हो गई की, धरम करो और धक्का खाओ....
"अबे साले ,तेरा दिमाग़ घास चरने गया है क्या,.. यदि दिव्या आइ लव यू वाला मेसेज अपने भाई या अपने बाप को दिखा देती तो मेरा क्या हाल होता...यदि वो भूले से भी मेरा वो मेसेज हमारे प्रिन्सिपल को दिखा देती तो आज ही मैं कॉलेज-निकाला घोषित हो जाता...."
"तू इतना भड़क क्यूँ रहा है,ऐसा कुछ भी तो नही हुआ ना..."
इतना अच्छा काम करने के बाद अरुण की गालियाँ सुनने से गुस्सा मुझे भी आ रहा था, अरुण की बॉडी की तरह मेरे भी बॉडी का टेंपरेचर बढ़ रहा था...लेकिन कैसे भी करके मैने अपने बॉडी टेंपरेचर को 37°C पर मेनटेन करके रखा हुआ था क्यूंकी वो अपुन का सॉलिड दोस्त था....
"ऐसा कुछ भी नही हुआ का क्या मतलब बे... तू हमेशा चूतिया रहेगा.. बकलोल कही का...उल्लू साले,कुत्ते,कमीने..."मुझे धक्का देते हुए अरुण ने कहा...
अरुण का ये धक्का सीधे मेरे लेफ्ट साइड मे असर किया और मैने अपने बिस्तर के नीचे रखा हुआ हॉकी स्टिक उठाया और बोला...
"सुन बे झन्डू ,यदि आगे एक शब्द भी बोला तो ये डंडा तेरे पीछे से घुसाकर आगे मुँह से निकालूँगा... यदि पिछवाड़े मे इतना ही दम था तो फिर मुझे क्यूँ बोला कि मैं तुझे दिव्या की चुम्मी दिलाऊ, जा के खुद क्यूँ नही माँग ली...? एक तो साला एहसान करो उपर से गाली भी खाऊ... सही है बेटा,बिल्कुल सही है.. इसिच को कहते है हवन करते हुए हाथ जलना....चल फुट इधर से अभी और यदि अपने साले गौतम और अपने ससुर का तुझे इतना ही डर था तो फिर दिमाग़ से पैदल उस दिव्या से इश्क़ ही क्यूँ लड़ाया... बेटा ये प्यार-मोहब्बत वो मीठी खीर नही,जिसे घर मे तेरी मम्मी सामने वाली टेबल पर रखकर कहती है कि खा ले बेटा, खीर बहुत मीठी बनी है जिसके बाद तू अपना मुँह फाड़कर सारा का सारा निगल जाता है और डकार भी नही मारता... ये प्यार-मोहब्बत वो मीठी खीर है जिसे खाने के बाद बंदे की जीभ से लेकर कलेजा और आख़िर मे पिछवाड़ा तक जल जाता है...इसलिए यदि गट्स है तभी माल के पीछे पडो,वरना उन्हे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ो और तूने क्या बोला मुझे अभी...?? Hmm ..."
"माफ़ कर दीजिए जहांपनाह और मेरी फाड़ना बंद करिए...आप कहे तो मैं गंगा नदी के बीच मे जाकर दोनो कान पकड़ कर उठक-बैठक लगा लूँगा...."
"अब आया ना लाइन पर..."
"अच्छा, जो हुआ सो हुआ...अब आगे क्या करूँ... ये बता "
"Whatsapp चला और उसको अपनी आदत डलवा दे... ताकि जब तू उससे एक पल के लिए भी दूर रहे तो वो तड़प जाए, तुझसे बात करने को.. वो बेचैन हो उठे तुझ जैसे बदसूरत को देखने के लिए.... फिर देखना वो चुम्मी भी देगी और चुसेगी भी..."
"क्या चुसेगी बे.."
"होंठ... भाई.... होंठ चुसेगी तेरे.... वैसे तूने क्या सोचा था..?"
"मैने भी होंठ ही सोचा था "
"हम दोनों ही बिक्कट शरीफ है. तू बस मेरे बताए रास्ते पर चलते रह... कुछ ही दिनो मे वो मज़े से लेगी भी और मज़े से देगी भी..."
"ये क्या बक रहा है बे कुत्ते..."
"मेरा मतलब तो गिफ्ट से था,अब भाई जब तुम दोनो कपल हो ही गये हो तो एक-दूसरे को गिफ्ट तो दोगे ही ना और बेटा ज़रा संभाल कर उसे दारू मत दे देना गिफ्ट मे...लवला "
"ओह! समझ गया..."
"बस तू मेरे नक्शे कदम पर चल,दिव्या, तेरा समान अपने आगे से भी लेगी और पीछे से भी लेगी..."
"मुझे मालूम है तेरे कहने का मतलब गिफ्ट है..."
"ग़लत...मेरा कहने का मतलब वो है... ,मतलब कि वो आगे से भी तेरा वो लेगी और पिछवाड़े मे भी लेगी.."ये बोलते ही मैं तुरंत वहाँ से कल्टी हो गया और अरुण हॉकी स्टिक लेकर मुझे दौड़ाने लगा......
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